समझदारी

क्या ये आसान नहीं, हंसना, खुश रहना। किसी की कुछ बातों को भुला दो कुछ बातें दिल में दबा दो और खुश रहो। एक सबसे बड़ी बात पचड़ों से दूर रहो, हो सके तो सबकी हाँ में हाँ मिलाओ न हो तो चुप रहो, क्योंकि बोलने से लोग बुरा मान जाते हैं और अब दुनिया ऐसे  ही चलती है।  हम गले मिलते हैं, हँसते हैं और फिर अपने आप में खो जाते हैं।  महाभारत में भगवान् श्री कृष्ण को  १०० गलतियां करने के बाद अंत में शिशुपाल का वध ही करना पड़ा था, भगवान अपने कान आराम से बंद कर के शिशुपाल को कुछ भी कहने देते, इससे उन पर क्या फर्क पड़  जाता क्योंकि वो तो भगवान् हैं। सुदामा और भगवान् कृष्ण आपस में बात करना बंद कर देते हैं क्योंकि सुदामा को लगता है कि चोरी किये हुए चने खाने से मित्र को पाप लगेगा इसलिए चने उन्हें नहीं खिलाऊंगा।  बात ये है कि गलत को गलत न कहना भी एक गलत है। 
जीवन जीना, आगे बढ़ना जरुरी है, पर किस तरह से बढ़ना ये उस से भी जरुरी है, हम में और जानवरों में क्या अंतर् है , हम में भावनाएं हैं और उनमें उतनी नहीं।  हम में अच्छा बुरा समझने की छमता है और उनमें नहीं।  कोई बड़े बड़े पहाड़ चढ़ रहा है , अंतरिक्ष में जा रहा है, कवितायेँ लिख रहा है।  कुछ लोगो को मैंने कहते हुए सुना कि उसके बाप का क्या जाता है , आराम से रहता खाना खाता, सोता और मजे करता।  इस पर कुछ कहना उचित नहीं होगा क्योंकि आप काफी समझदार हैं।  सरदार भगत सिंह मुझे पसंद हैं और पसंद नहीं, सरकार यहां गलत है यहां सही, पर कचरा मैं रोड पर ही फेकूंगा क्योंकि इससे मुझपर कोई असर थोड़ी पड़ेगा। चलो मैं एक बात बताता हूँ , कचरा रोड पर फेंकोगे , वातावरण खराब होगा, आने वाली पीढ़ी पर असर पड़ेगा और इतनी दूर तक नहीं जाते हैं जानवर इससे मर जायेगा।  पर हमें इससे क्या , जब तक मुझे सांस आती है मैं क्यों सोचूं ? 
मैं संवेदना पर काफी कहता हूँ , क्योंकि हम सभी एक धागे से बंधे हुए हैं , कुछ प्रकृति के नियमो से , मान लो १०० रुपये से १०  दिन चलाना है।  एक बात तो ये है कि आज ही अच्छा कुछ खाया जाये  कल की कल देखेंगे और फिर कल भूके मर जाएँ या ना भी मरें पर होने की प्रायिक्ता काफी ज्यादा है। 
आज हमें इससे सबसे ज्यादा दिक्क्त है कि कोई हमें बुरा कैसे कह देगा, मैं कहता हूँ कि शुक्रिया अदा करो उसका क्योंकि आज किसी के पास इतना वक़्त नहीं है कि बिना मतलब के तुम पर जाया करे। कोई भी किसी की भी नजरों में बुरा नहीं बनना चाहता है, चाहे वो परिवार का  सदस्य क्यों न हो। 
बातों से डर लगता है क्योंकि जब हम समझने लगते हैं कि यहां तो गलती हमारी है हमारा ईगो (अहंकार ) सामने से आकर कहता है मेरी मर्जी , मर्जी से बात नहीं बनती है, समझना पड़ता है , सोचना पड़ता है क्योंकि हमारे पास एक दिल है जो समझना चाहता है जो तर्कों से नहीं चलता , जो अंदर से जानता है कि कुछ गलत तो किया है मैंने , पर दिमाग अपना काम करता है और कहता है , सब करते हैं और इसमें ही फायदा है सोजा अभी। 
जैसे अभी कह रहा होगा , अगर इतना ये लिखने वाला सही काम में वक़्त लगाता तो क्या ही हो जाता , कितना फ़ालतू सोचता है। 
कवितायेँ , उपन्यास , फिल्म, पेड़ पौधे , तारे हमें अपने आप से रूबरू कराते हैं, क्यों एक कवि अपनी कल्पना लिखे, क्यों लोग उसे पढ़ें और क्यों वक़्त बर्बाद करें।  क्यों कोई किसी के लिए जान से खेले, क्यों कोई प्रेमी प्रेम में जान देदे, क्यों कुछ किताबें पढ़कर आँखों में आंसू आ जाएँ।
कोशिश करो कुछ वक़्त फ़िल्टर फ्री जीने की, जिसमे दिल की बात किसी से कह पाओ, किसी से कुछ समझो, किसी को  कुछ समझा पाओ, कोई चुपचाप बैठा हो तो उसे हंसा पाओ।  कुछ वक़्त तो किसी के काम आओ, दिल से बिना किसी स्वार्थ के। 

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