चाय

 वो एक ही चाय वाले के पास बैठकर चाय पीते हैं 

चाय वाला कुछ दिन न आये तो बिन पिये  निकल जाते हैं 

फिर कुछ दिन बाद जब चाय वाला आ जाता है तो 

पूछते हैं, चचा खैरियत तो है न सब !

इतने दिन क्यों नहीं आये 

और फिर चाय पीकर मुस्कुराते हैं 

शहर छोड़ने के बाद भी, कुछ सालों  बाद 

उसी चाय की दुकान पर जाते हैं 

और कोशिश करते हैं उन लम्हों को जीने  की 

उन एहसासों में डूबकर पिछले  दिनों में जाने की 

चाय कहीं भी पी जा सकती है 

पर वो स्वाद हर जगह,हर गिलास में नहीं आता 

क्योंकि चुटकी भर एहसास हर जगह नहीं मिलाये जाते। .


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