बीस का नोट

नाइ की दुकान पर
एक छोटा बच्चा टकटकी नजरों से इधर-उधर देख रहा था
कुछ देर होती और वो बाहर देखने लगता
और फिर से एकटक लगाकर देखता
फिर एक तरफ घड़ी की सुइयों की तरफ देखता
दिन के करीब 1 बज रहे थे
पीछे के शीशे पर देखकर मुझे ऐसा लग रहा था कि
शायद उसे कहीं जाने की जल्दी हो
मुझे लगा शायद उसे खेलने जाना हो
शायद उसके पापा ने उसे दुकान पर ही रोक दिया हो।
उस वक्त बाल काटने की फीस मात्र बीस रुपये हुआ करती थी।
जैसे ही मैं कुर्सी से उठा, जेब मे हाथ डालकर मैने वो बीस का नोट नाइ को दिया।
वो बच्चा भी अपनी जगह से खड़ा हुआ
उसने वो बीस का नोट पकड़ा और बाहर चल दिया।
कुछ देर बाद मैं कुछ काम से किराने की दुकान पर पहुँचा
वो बच्चा बीस रुपये की दाल खरीद रहा था ।
शायद जब वो दाल घर जाती तो चूल्हा जलता और खाना बनता ।

शुभम चमोला

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