जब भी कभी दिल्ली मेट्रो या बस स्टैंड पर जाना होता था तो अक्सर हम ये सोचते थे कि सब भाग क्यों रहे हैं? कुछ दिनों बाद गौर किया तो हम भी खुद भाग रहे थे । आज हम में से हर कोई जिंदगी की भाग दौड़ में व्यस्त है, सुबह-सुबह बस हो या मेट्रो स्टेशन हर कोई भाग रहा होता है, हर कोई जल्दी में होता है,कुछ लोग हैडफोन लगाकर अपनी एक दुनिया में भाग रहे होते हैं,कुछ लोग नींद पूरी करने की कोशिश कर रहे होते हैं,कोई अपने नोट्स को रिवाइज कर रहा होता है, कोई हाथ में ब्रेड लिए बस के पीछे भाग रहा होता है, तो किसी को सुबह जाकर हॉस्पिटल की लाइन में लगना है, बहरहाल सबका अपना -अपना कुछ कम है ।
कहने का मतलब ये है कि हर कोई भाग रहा होता है, क्यों? एक ही जवाब ।एक बेहतर कल, धीरे- धीरे ये भागना हमारी जिंदगी का हिस्सा बन जाता है और जीवन प्रयन्त हम भागते ही रहते हैं। फिर आता है वो दिन जिसका हर किसी को इंतजार रहता है, रविवार या संडे , इंसान सोचता है कि पूरे दिन की थकान इस दिन मिटाई जाए और होता क्या है,अक्सर हफ्ते भर के छूटे कामों को करते -करते ये दिन कहीं खो जाता है और फिर वही दिनचर्या शुरू । और अब वो सुकून वाली नींद भी नहीं आती क्योंकि जैसे ही सोने लगते हो तो कल की टेंशन शुरू बस ऐसे ही ये वक्त और जीवन दोनों चलते रहते हैं, फिर सोचा कि •••
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कहने का मतलब ये है कि हर कोई भाग रहा होता है, क्यों? एक ही जवाब ।एक बेहतर कल, धीरे- धीरे ये भागना हमारी जिंदगी का हिस्सा बन जाता है और जीवन प्रयन्त हम भागते ही रहते हैं। फिर आता है वो दिन जिसका हर किसी को इंतजार रहता है, रविवार या संडे , इंसान सोचता है कि पूरे दिन की थकान इस दिन मिटाई जाए और होता क्या है,अक्सर हफ्ते भर के छूटे कामों को करते -करते ये दिन कहीं खो जाता है और फिर वही दिनचर्या शुरू । और अब वो सुकून वाली नींद भी नहीं आती क्योंकि जैसे ही सोने लगते हो तो कल की टेंशन शुरू बस ऐसे ही ये वक्त और जीवन दोनों चलते रहते हैं, फिर सोचा कि •••
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चलो एक शाम जिंदगी से कुछ पल चुराएं हम।
चलो एक शाम खुद को खुदसे मिला कर लाएं हम।
चलो कुछ पलों के लिए भूल जाएं कि कौन हैं हम।
चलो कुछ पलों के लिए इस भीड़ से कहीं दूर चले जाएं हम।
चलो एक शाम अपने आप को खोज आएं हम ।
चलो एक शाम बस बैठकर चाँद को निहारे हम।
चलो एक शाम सरसराती हवा का एक झोंका महसूस कर आएं हम।
चलो एक शाम झरने के पानी में पैर डाले और सबकुछ भूल जाएं हम।
चलो एक शाम ढलता सूरज देख आएं हम।
चलो एक शाम फिर से अपना बचपन देख आएं हम।
चलो एक शाम दादी की उन कहानियों में खो जाएं हम।
चलो एक शाम माँ की लोरीयाँ सुनकर सुकून से सो जाएं हम।
चलो एक शाम ●●●●●●●
चलो एक शाम खुद को खुदसे मिला कर लाएं हम।
चलो कुछ पलों के लिए भूल जाएं कि कौन हैं हम।
चलो कुछ पलों के लिए इस भीड़ से कहीं दूर चले जाएं हम।
चलो एक शाम अपने आप को खोज आएं हम ।
चलो एक शाम बस बैठकर चाँद को निहारे हम।
चलो एक शाम सरसराती हवा का एक झोंका महसूस कर आएं हम।
चलो एक शाम झरने के पानी में पैर डाले और सबकुछ भूल जाएं हम।
चलो एक शाम ढलता सूरज देख आएं हम।
चलो एक शाम फिर से अपना बचपन देख आएं हम।
चलो एक शाम दादी की उन कहानियों में खो जाएं हम।
चलो एक शाम माँ की लोरीयाँ सुनकर सुकून से सो जाएं हम।
चलो एक शाम ●●●●●●●
Shubham chamola
#Chlo ek shaam khud se mil aayein hum......
ReplyDelete😇😇
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