जब इश्क़ और मोहोब्बत हुआ करती थी

ये उस दौर की बात है जब इश्क़ और मोहोब्बत हुआ करती थी, होती भी थी और परवान भी चढ़ा करती थी।
आज तो मोहब्बत क़ानून की चार दीवारी में नीलाम की जाती है ।
वो दौर कुछ और था जब हीर- राँझा , लैला -मझनू के किस्से मशहूर हुआ करते थे , मशूहर तो आज भी हैं पर तब लोगों के आँखों से आँसू बहते थे और आज वही किस्से कुछ हँसी के पात्र बनकर रह गए हैं ।
वो कुछ दौर था जब हिचकियाँ एहसासों को एक दिल से दुसरे दिल नें पहुंचा देती थी, और आज तो बस तन की प्यास बुझाने का दौर चल पडा है ।
कभी सालों तक किसी के आने का इन्तजार होता था तो आज किसी के थोड़े जाने का इंतजार होता है ।
सब कुछ वही है पर वक्त बदल गया है ।
कुछ को ये बात सही भी लगती है पर मेरे लिए तो बस ये हैडफोन उलझाने वाली बात हो गयी है, कुछ वक्त तक आलस के मारे उसी उलझे हुए हैडफोन से गाने सुनते हैं पर एक वक्त के बाद उसे सुलझाना ही पड़ता है , सुलझाना शुरू करते तो हैं,पर जब वो सुलझता है तो फ़ोन की बैटरी समाप्त हो जाती है, और ये तो जिंदगी की बैटरी है साहब दुबारा चार्ज भी नहीं कर सकते ।
शुभम चमोला

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