कुछ मुस्कुराहटें अक्सर दिल में घर कर जाती हैं
उन्हीं में से एक मुस्कुराता चेहरा देखने को मिलता है एक मजदूर ,  का हालाँकि  उसे मुस्कुराने का इतना मौका तो नहीं मिलता पर जब भी मिलता है वो  दिल खोल कर मुस्कुराता है, उसके चेहरे की  चमक में अक्सर आत्मविश्वास दिखाई देता है । जब भी मैं कुछ इस प्रकार के लोगों से मिलता हूँ अक्सर खुद को असहाय और स्वार्थी पाता हूँ , अचानक से ही सारा संसार जैसे शून्य में समा जाता हो ।

सुबह सुबह ही घर से भूखे पेट जिम्मेदारियों का बोझ  कंधो पर रख कर चलता है वो ।
दिन भर कड़कती घूप में अपने पसीने से कुछ जरूरतें पूरी करने की कोशिश करता है वो ।
दीवाली के दो दीयों से अपने घर को रोशन करने को कुछ दिनों अपनी हड्डियों को बड़ा तड़पाता है वो ।
अक्सर  थककर उसी रोड किनारे सो जाता है वो
जहां रिमझिम होती बारिश में दुनिया खुशियाँ मनाती है ,ये रात अब कैसे कटेगी बिन छत के ,ये सोच बेचैन हो जाता है वो ।

लाख परेशानियाँ हों पर दिल का रुदन अपने अंदर ही समेटे रखता है वो ,
अक्सर अपने आँसुओं से ही अपनी प्यास बुझाता है वो ।
ये वही  शक्श है जो अक्सर मुस्कुराता है
आजादी के दिन एक तिरंगा लिए बड़ी शान से चलता है वो
राष्ट्रगान हो तो कुछ पल खड़े भी हो जाता है वो ।
परिवार की चाहत को पूरा करने को रोज शारीरिक पीड़ा को मात देता है वो।
फिर शाम को जलेबी के दो टुकड़ों को हाथ में लेकर बड़ा मुस्कुराता है वो।
धन दौलत की हवा में उड़ते हम न जाने कितनी बार उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाते है , पर अक्सर हाथ जोड़े खड़े दिखाई देता है वो ।
जब भी मिलता हूँ ऐसे किसी शख्स से , खुद को अक्सर बेबस, स्वार्थी और लाचार सा पाता हूँ ।
शुभम चमोला

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